Corruption(भ्रष्टाचार) Essay in Hindi
भ्रष्टाचार आज देश में ही नहीं यद्धपि पूरे विश्व की एक बड़ी भयानक समस्या है जो किसी न किसी रूप में सदैव कायम रहा है | यह समाज, देश की जड़ों में लगा ऐसा घुन है जो सभी आदर्शों और नैतिकता की जड़ों को धीरे – धीरे खोखला कर रहा है |
असल में आचरण व्यवहार का पतन ही भ्रष्टाचार होता है इस दृष्टी से भ्रष्टाचार शब्द का सामान्य अर्थ है मानव का अपने आचार – विचार से भ्रष्ट या पतित हो जाना | दरअसल मानवों से ही समाज, देश और राष्ट्र का स्वरुप बनकर विकास पाता है और जब यही मानव आचार – विचार में पतित हो जाए तो भ्रष्टाचार का भूत बड़ी भयानकता से सारे समाजऔर राष्ट्र को आक्रांत कर लिया करता है |
नव – निर्माण और विकास के दौर से गुजर रहे मानव के लिए ये एक बड़ा दुर्भाग्य है जो की सारा संसार ही इस भयानक भ्रष्टाचार के शिकंजे में बुरी तरह फंसा है | हमारा देश भारत तो आज आमूल – चूल भ्रष्टाचार की दलदल में इतनी बुरी तरह निमग्न हो चूका है कि मानों भ्रष्ट हुए या किये बिना एक भी कदम चल पाना मुश्किल होता है |
आज भारत में भ्रष्टाचार के जितने रूप व्याप्त है दुनिया के शायद ही किसी अन्य देशों में मिलता हो | यहाँ तो कदम – कदम पर रिश्वत, भाई – भतीजावाद, मिलावट, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, कमीशनखोरी, दायित्व पालन में विमुखता, सरकारी साधनों का दुरुपयोग, विदेशी मुद्रा हेरा – फेरी, रक्षा सौदा में कमीशन, आयकर चोरी, ठेके आदि देने में जान – पहचान,सरकार बनाने और सरकार बचाने के लिए संसद – सदस्यों और विधान – सभा सदस्यों की खरीद – फरोस्त आदि सभी भ्रष्टाचार के रूप में मौजूद होने के परिणामस्वरुप प्रगति
और विकास का लाभ सामान्य और आम जन तक नहीं पहुँच पा रहा है |
ये तो भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण मात्र थे जबकि इनके अलावा भी भ्रष्टाचार के अनगिनत स्वरुप है | यह आवश्यक नहीं कि भ्रष्टाचार केवल धन के ही रूप में हो | भ्रष्टाचार के तो रोज नये स्वरुप बनते भी रहते है और अधिक से अधिक लाभ पाने की इच्छा और प्रक्रिया में पता नहीं आज भ्रष्टाचार के कितने रूप इजाद कर लिए गए है |
परिणाम आज हमारे सामने है कि आज कोई भी भ्रष्टाचार के बल पर अपार सम्पति जुटा लेने वाला भी संतुष्ट नहीं | अनेक प्रकार के पाप, दुराचार और अन्याय – अत्याचार बढ़ रहे है | कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है | राजनीति, प्रशासन, धर्म, समाज आदि कोई भी तो क्षेत्र इस भ्रष्टाचार के प्रभाव से अछूता नहीं | यहाँ तक कि वश चलते एक हाथ दूसरे हाथ तक को निगल जाना चाहता है | इसका प्रमाण तब मिलता है जब एक ही दफ्तर में लगभग समान स्तर पर और साथ – साथ बैठकर काम करने वाला भी एक – दूसरे का काम बिना मुट्ठी गर्म किये नहीं करना चाहता |
शिकायत करने पर बिजली विभाग या अन्य विभाग का कोई कर्मचारी हमारे घरों में अपनी ड्यूटी के समय में भी यदि कुछ ठीक करने आता है तो बिना बियर शराब की बोतल या नकद रिश्वत के काम नहीं करता | वह खुले रूप से इस सब की मांग करता , “ कर लो जो कुछ करना है किसी ने | बिना लिए दिए काम हो ही नहीं सकता | ” भ्रष्ट मानसिकता की यह चरम सीमा है |
घोषित और सर्वविदित अपराधी, स्मगलर, कातिल तक खुलेआम अपराध कर भ्रष्ट नौकरशाही को रिश्वत देकर साफ़ बरी हो जाते है | जो निरपराध है वह कानून के रक्षकों के शिकंजे में नाह फसांया जाता है और रिश्वत दे पाने में असमर्थ होने के कारण यातनाएं तो झेलता ही है, कई बार मारा भी जाता है | सरकारी एजेंसियां जनता के लिए जनता के पैसे से मकान, पुल, सड़कें, आदि बनाती है या ठेकेदारों से बनवाती है | वे एक साधारण बरसात का दबाव न सह टूट – फूट कर बेचारे लोगों के प्राण तक भी हर लेती है |
इस प्रकार आज समूची नैतिकता, व्यवस्था ही भ्रष्ट होकर रह गयी है | दूध का धुला खोजने पर भी नहीं मिलता है और जो मिलता भी है उसे विनष्ट करने की तमाम चेष्टा की जाती है | हमारे सामने अजीब विवश स्थिति पैदा हो गई है लेकीन प्रश्न यह उठता है कि आखिर इसका क्या कारण है |
भ्रष्टाचार के कारण और रोकथाम-
भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय समस्या है । ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्यों की अवहेलना कर निजी स्वार्थ में लिप्त रहते हैं ‘भ्रष्टाचारी’ कहलाते हैं । आज हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरे तक समाहित हैं ।
कोई भी मंत्रालय, कोई भी विभाग शेष नहीं बचा है जहाँ पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों । मुनष्य की स्वार्थ लोलुपता व वर्तमान परिवेश में उसकी भोगवादी प्रवृत्ति भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी समझी जाती है । भ्रष्टाचार हर एक दृष्टि में देश व समाज के घातक होता है ।
जब तक इस राष्ट्रीय समस्या का स्थाई निदान नहीं मिलता तब तक कोई देश या राष्ट्र पूर्ण रूप से उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकता । यह पथ-पथ पर प्रगति की राह का अवरोधक बनता रहेगा । भ्रष्टाचार के कारणों का यदि हम गहन अध्ययन करें तो हम देखते हैं कि इसके मूल में अनेक कारण हैं जो भ्रष्टाचार के लिए कारण बनते हैं । सबसे प्रमुख कारण है आदमी में असंतोष की प्रवृत्ति ।
मनुष्य कितना भी कुछ हासिल कर ले परंतु उसकी और अधिक प्राप्त कर लेने की लालसा कभी समाप्त नहीं होती है । किसी वस्तु की आकांक्षा रखने पर यदि उसे वह वस्तु सहज रूप से प्राप्त नहीं होती है तब वह येन-केन प्रकारेण उसे हासिल करने के लिए उद्यत हो जाता है । इस प्रकार की परिस्थितियाँ भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं ।
भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण है- मनुष्य की स्वार्थ की प्रवृत्ति । बात चाहे एक व्यक्ति की हो या फिर किसी समाज या संप्रदाय की, लोगों में निजी स्वार्थ की भावना परस्पर असामानता को जन्म देती है । यह असामानता आर्थिक, सामाजिक व प्रतिष्ठा के मतभेद को बढ़ावा देती है ।
किसी उच्च पद पर आसीन अधिकारी प्राय: गुणवत्ता की अनदेखी कर अपने समाज, परिवार अथवा संप्रदाय के लोगों को प्राथमिकता देता है तो उसका यह कृत्य भ्रष्टाचार का ही रूप है ।भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति सदैव न्याय की अनदेखी करता है ।
” एक छोटी, एक सीधी बात, विश्व में छायी हुई है वासना की रात । ”
देश में चारों ओर व्याप्त सांप्रदायिकता, भाषावाद, भाई-भतीजावाद, जातीयता आदि से पूरित वातावरण भ्रष्टाचार के प्रेरणा स्त्रोत हैं । भ्रष्टाचार के कारण ही कार्यालयों, दफ्तरों व अन्य कार्यक्षेत्रों में चोरबाजारी, रिश्वतखोरी आदि अनैतिक कृत्य पनपते हैं । दुकानों में मिलावटी सामान बेचना, धर्म का सहारा लेकर लोगों को पथभ्रमित करना तथा अपना स्वार्थ सिद्ध करना, दोषी व अपराधी तत्वों को रिश्वत लेकर मुक्त कर देना अथवा रिश्वत के आधार पर विभागों में भरती होना आदि सभी भ्रष्टाचार के प्रारुप हैं ।
हमारे देश के लिए यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है कि युधिष्टिर, हरिश्चंद्र जैसे धर्मनिष्ठ शासकों व साधु-संतों की इस पावन धरती पर आज भ्रष्टाचार का विष फैल चुका है । छोटे से छोटे कर्मचारियों से लेकर देश की सत्ता पर बैठे हमारे शीर्षस्थ नेतागण भी आज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।
समस्त भारतीय राजनीतिक परिवेश आज कुरसीवाद पर सिमट गया है । कुरसी के लिए हमारे राजनीतिज्ञ कोई भी सीमा लाँघने के लिए तैयार हैं । देश की रक्षा करने हेतु उच्च पदों पर आसीन मंत्री व अधिकारियों पर ही जहाँ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हों, उस देश के भविष्य की कल्पना बड़े ही सहज रूप से की जा सकती है ।
भ्रष्टाचार के फलस्वरूप राष्ट्र को अनेकों विषमताओं का सामना करना पड़ रहा है । सभी ओर अव्यवस्था व असमानता तथा देश के नवयुवकों में व्याप्त चिंता, भय व आक्रोश, भ्रष्टाचार के ही दुष्परिणाम हैं ।
यदि इसी भाँति भ्रष्टाचार फलता-फूलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी समस्त शक्तियाँ क्षीण होती चली जाएँगी । हमारी राष्ट्रीय एकता खंड़ित होने के कगार पर पहुँच जाएगी । अत: राष्ट्र की एकता व अखंडता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम भ्रष्टाचार को मिटाने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ ।
भ्रष्टाचार के समाधान के लिए आवश्यक है कि भ्रष्टाचार संबंधी नियम और भी सख्त हों तथा भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले । इसके लिए सख्त और चुस्त प्रशासन अनिवार्य है । इस समस्या के निदान के लिए केवल सरकार ही उत्तरदायी नहीं है, इसके लिए सभी धार्मिक, सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को एकजुट होना होगा । सभी को संयुक्त रूप से इसे प्रोत्साहन देने वाले तत्वों का विरोध करना होगा ।
सभी भारतीय नागरिकों को इसे दूर करने हेतु कृतसंकल्प होने की आवश्यकता है । भ्रष्टाचार के दोषी व्यक्तियों का पूर्णरूपेण सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए ताकि ऐसे लोगों के मनोबल को खंडित किया जा सके जिससे वह इसकी पुनरावृत्ति न कर सके । भ्रष्टाचार के विरोध में राष्ट्रीय जन-जागृति ही राष्ट्र को भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों से मुक्त करा सकती है ।
उसी समय हम गर्व से कह सकते हैं कि:
” अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर
छिटका जीवन हरियाली पर मगंल कुंकुम सारा ।
अरुण यह मधुमय देश हमारा ! ”
भारत में भ्रष्टाचार नियंत्रण हेतु प्रशासनिक संस्था
विभागीय नियंत्रण
क़ानूनी प्रावधान
लेखा परिक्षण
1964 के पूर्व व्यवस्था
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरों (C. B. I.)
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (C. V. C.)
मंत्रालय में सतर्कता आयोग
राज्यों में सतर्कता आयोग
लोकायुक / लोकपाल
ये एक कटु सत्य है कि कानून बनाकर और कठोर दंड देखकर भय तो उत्पन्न किया जा सकता है पर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता | इसलिए दृढ़ संकल्प और नैतिक सक्रियता भ्रष्टाचार की समस्या से छुटकारा पाने के कारगर उपायों में एक सबसे अच्छा उपाय है | अगर लोग राष्ट्र और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन करें| अपने अंदर नैतिकता को जगाये | जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनायें तो भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है |
इसके अलावा हर धर्म, समाज और राजनीति के अगुआ स्वयं नैतिक बनकर कठोरता से नैतिकता के अनुशासन को लागू करें | जो सर्वविदित और घोषित अपराधी हैं, उनके साथ किसी भी प्रकार की रू-रियायत न बरते |
आज जन्म लेने वाली नयी पीढ़ी के सामने जब हम नैतिक मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करना शुरू कर देंगे, जब भ्रष्ट हो चुकी पीढ़ी को बलपूर्वक दबा दिया जायेगा, तब कही जाकर इस स्थितिहीनता और भ्रष्टता का रोकथाम हो सकेगा |
भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश तभी होगा जब लोग अपने मन पर संयम, इच्छाओं पर नियंत्रण, भौतिक उपलब्धियों की दौड़ से पीछा छुड़ाकर सहज स्वाभाविक जीवन व्यतीत करना आरम्भ करेंगे | ये सभी उपाएँ मिलकर यक़ीनन भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने में मदद करेंगी |
Bhrashtachar in hindi - Corruption Essay in Hindi
Reviewed by Daniel
on
September 04, 2018
Rating:
This blog really well written and read more information on Essay on Corruption in hindi and keep share more information
ReplyDelete